“कश्मकश”

कश्मकश ना रखो, ना रखो कोई भय और संताप।
सच्चाई के पथ पे चलते हुए, चाहे आए जितनी भी आंच।।
मनमर्जी ना चलेगी तेरी,चाहे जितना रख लो अभियान।
कड़ी नज़र होगी तेरे पापों की, हो जितना तू होशियार।।
हम और तुम बस है थोड़े दिनों के, इस दुनिया के मेहमान।
बाकी दुनिया आनी जानी, सब है भ्रम का भारी जंजाल।।
चाहे जितना शोर मचा लो,और झूठ का कर लो तुम व्यापार।
पाप की गठरी जब खुलेगी, कोई ना होगा तेरा आसपास।।
साथी-संगी नाते-रिश्ते, सब मतलब से हैं तेरे साथ।
अंत समय जब आएगा, तेरे किए कर्म ही होंगे साथ।।
आंख- मिचोली खेल रहा हैं, दे कर प्रलोभन ये संसार।।
झूठी माया का जाल है दुनिया,बैठा हर कोई कुंडली मार।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
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