संगिनी

जब संध्या की चूनर ढलती,
तब रात्रि धीरे से आती,
थके पलों को लेकर गोद में,
मधुर थपकी सी है दे जाती।
जीवन की राहों में संगिनी,
जैसे हो रात्रि का साया,
हर दर्द को चुपके से समेटे,
स्नेह का जैसे दीप जलाया।
कभी चाँदनी बन मुस्काए,
कभी अँधेरों में है संग चले,
सुख-दुःख की हर डगर पर,
साथ निभाए, संग ही ढल जाए।
रात्रि की शीतल छाया में,
जीवन-संगिनी का हो प्यार,
जैसे तारे झिलमिलाते,
हर अँधेरे को कर उजियार।
साथ तुम्हारा हो प्रियतम,
तो रात्रि भी हमको सजीव सी लगे,
तेरी बाहों का यह बंधन जैसे,
चिर-सपनों के संगीतो से सजे ।