Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Oct 2024 · 1 min read

आदिवासी और दलित अस्मिता का मौलिक फर्क / मुसाफिर बैठा

एक आदिवासी बुद्धिजीवी
अन्य समाज से पिछड़ कर भी
अपनी सभ्यता और अस्मिता को आगे रख
अकड़ता है।

एक दलित बुद्धिजीवी
अन्य समाज से पिछड़कर
अपने हक के रूप में
हड़पी अस्मिता को पाने के लिए तड़पता है

Language: Hindi
47 Views
Books from Dr MusafiR BaithA
View all

You may also like these posts

प्रित
प्रित
श्रीहर्ष आचार्य
#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
*प्रणय*
किसी ने कहा- आरे वहां क्या बात है! लड़की हो तो ऐसी, दिल जीत
किसी ने कहा- आरे वहां क्या बात है! लड़की हो तो ऐसी, दिल जीत
जय लगन कुमार हैप्पी
कुछ गैर समझ लेते हैं
कुछ गैर समझ लेते हैं
Sudhir srivastava
।।बचपन के दिन ।।
।।बचपन के दिन ।।
Shashi kala vyas
बौराया मन वाह में ,तनी हुई है देह ।
बौराया मन वाह में ,तनी हुई है देह ।
Dr. Sunita Singh
प्रजातन्त्र आडंबर से नहीं चलता है !
प्रजातन्त्र आडंबर से नहीं चलता है !
DrLakshman Jha Parimal
बेहतरीन इंसान वो है
बेहतरीन इंसान वो है
शेखर सिंह
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
मैं नास्तिक क्यों हूॅं!
मैं नास्तिक क्यों हूॅं!
Harminder Kaur
चैलेंज
चैलेंज
Pakhi Jain
प्रशांत सोलंकी
प्रशांत सोलंकी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
"घनी अन्धेरी रातों में"
Dr. Kishan tandon kranti
गाँव की प्यारी यादों को दिल में सजाया करो,
गाँव की प्यारी यादों को दिल में सजाया करो,
Ranjeet kumar patre
चाहे हमको करो नहीं प्यार, चाहे करो हमसे नफ़रत
चाहे हमको करो नहीं प्यार, चाहे करो हमसे नफ़रत
gurudeenverma198
- तुम्हारा मुझसे क्या ताल्लुक -
- तुम्हारा मुझसे क्या ताल्लुक -
bharat gehlot
मां
मां
Dr.Priya Soni Khare
ये दिल्ली की सर्दी, और तुम्हारी यादों की गर्मी—
ये दिल्ली की सर्दी, और तुम्हारी यादों की गर्मी—
Shreedhar
क्या कहूँ ?
क्या कहूँ ?
Niharika Verma
स्त्री
स्त्री
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
बरसात
बरसात
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वक्त और एहसास
वक्त और एहसास
पूर्वार्थ
24/251. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/251. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नहीं खुलती हैं उसकी खिड़कियाँ अब
नहीं खुलती हैं उसकी खिड़कियाँ अब
Shweta Soni
बारिश की मोतियां
बारिश की मोतियां
Krishna Manshi
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
लपेट कर नक़ाब  हर शक्स रोज आता है ।
लपेट कर नक़ाब हर शक्स रोज आता है ।
Ashwini sharma
'डोरिस लेसिगं' (घर से नोबेल तक)
'डोरिस लेसिगं' (घर से नोबेल तक)
Indu Singh
तुम्हारी खुशी में मेरी दुनिया बसती है
तुम्हारी खुशी में मेरी दुनिया बसती है
Awneesh kumar
* सामने आ गये *
* सामने आ गये *
surenderpal vaidya
Loading...