Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Sep 2024 · 3 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम: बातों का क्या !
लेखक: हरिशंकर शर्मा
प्लॉट नंबर 213, 10- बी स्कीम, गोपालपुरा बाईपास, निकट शांति नाथ दिगंबर जैन मंदिर, जयपुर 302018 राजस्थान
मोबाइल 94610 46594 तथा 889 058 9842
प्रकाशक: दीपक पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
322, कमला नेहरू नगर, हसनपुर-सी, जयपुर 302006
प्रथम संस्करण: 2025
मूल्य: 275 रुपए
कुल पृष्ठ संख्या: 107
————————————-
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश 244901
मोबाइल 9997 615451
————————————
बरेलीनामा
🍂🍂🍂🍂
हरिशंकर शर्मा के रोम-रोम में बरेली बसा हुआ है। बातों का क्या! पुस्तक में आपने बरेली की नब्ज पकड़ने का काम किया है। अपने-अपने नगर और महानगर में रहते तो हजारों-लाखों लोग हैं, लेकिन उसके उन्नयन की दिशा में गहरी सद्भावना से सोच-विचार करने वाले लोग कम ही होते हैं। प्रायः विचारक लोग भी सतही टिप्पणी करके आगे बढ़ जाते हैं।

हरि शंकर शर्मा अगर चाहते तो उतना खरा-खरा न कहते, जितना उन्होंने ‘बातों का क्या’ पुस्तक में कह दिया है। दिन प्रतिदिन की घटनाओं पर एक पत्रकार की शैली में उन्होंने चिंतन किया। समस्याओं के मूल तक पहुंचे। जो सही समझा, वह लिख दिया। आपका आदर्श ‘न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर’ है। भूमिका में आपने लिखा भी है कि पुस्तक में वर्णित प्रसंग व्यक्तिगत न होकर प्रतीक मात्र हैं।

अब जब बरेली महानगर की गतिविधियों और प्रवृत्तियों पर हरिशंकर शर्मा को लिखना था तो यह संभव नहीं था कि कतिपय आयोजनों और बुद्धिजीवियों-साहित्यकारों के नाम न लेने की वह शपथ ले लेते। लेकिन व्यक्तिगत निंदा-स्तुति से वह यथासंभव बचे हैं। इससे विचारगत शैली उभर कर सामने आई है ।

विषय विविध आकार लिए हुए हैं। बाल पार्क की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है, तो अपने ही पैसों से खरीदे गए पुरस्कारों की पोल भी लेखक ने खोली है। विदेशी पुरस्कारों को पैसा खर्च करके प्राप्त करने की होड़ की वास्तविकता को भी पुस्तक उजागर करती है।
सूक्तियों के रूप में पुस्तक में व्यंग्य की भरमार है। आजकल परोक्ष रूप से इसी विधा में कुछ कहा भी जा सकता है। हरिशंकर शर्मा लिखते हैं:

कार्यक्रम समय से ठीक एक घंटा विलंब से प्रारंभ हुआ, क्योंकि यह मूर्ख-सम्मेलन नहीं बुद्धिजीवी-सम्मेलन था। (पृष्ठ 14) यहां पर एक घंटे विलंब को ‘ठीक’ विशेषण से विभूषित करके लेखक ने व्यंग्य की धार को दुगना कर दिया है।

एक अन्य स्थान पर उन्होंने जानबूझकर कठिन शब्दों का प्रयोग करके तथाकथित ऊॅंचे दर्जे के लेखन पर यह कहकर प्रश्न चिन्ह लगाया है कि जो कतई अबूझ लिखे, दरअसल वही महान साहित्य रच रहा है। पाठक जाए भाड़ में। (पृष्ठ 18)

साहित्यिक आयोजनों आदि में सम्मान किनको और किस प्रकार मिलते हैं, इस पर हरिशंकर शर्मा का व्यंग्य इस वाक्य से प्रकट हो रहा है:

इस वर्ग का कृपा पात्र बनने के लिए विशेष प्रकार के हाथ जोड़ना और मुस्कुराना आना चाहिए। (पृष्ठ 20)

एक स्थान पर उनकी टिप्पणी है:

साहित्यकार अभिनंदनों की अंधी दौड़ में लगा है। (पृष्ठ 68)

पुस्तक के तैंतीस लेखों में एक लेख चबूतरों के बारे में है। यह पूरी तरह व्यंग्य लेख है। इसमें लेखक ने बहुत चुभते हुए शब्दों में लिखा है:

जनता ने चबूतरों के लिए नाले-नालियों की धाराऍं बदलने में भागीरथ परिश्रम किया है। (प्रष्ठ 76)

लेखक कहता है:

मेरी भी इच्छा है कि नगर में मैं पहचान बनाऊं। लेकिन एनजीओ संगठन जैसा चबूतरा मेरे पास नहीं है। सांस्कृतिक पहचान के लिए चबूतरा होना आवश्यक है। क्योंकि बात चबूतरे की है। (प्रष्ठ 77)

पुस्तक में बरेली के साहित्यकारों का आकलन भी लेखक ने किया है। उसने धर्मपाल गुप्त शलभ, निरंकार देव सेवक, श्रीमती शांति अग्रवाल, सुकेश साहनी, मधुरेश, ज्ञानवती सक्सेना, प्रियंवदा देवी श्रीवास्तव तथा डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी आदि के साहित्यिक योगदान को सराहा है। उसके अनुसार:

धर्मपाल गुप्त शलभ की पैनी दृष्टि सदैव महानगर के साहित्यिक सन्नाटे को तोड़ती रही है। (प्रष्ठ 69)

ज्ञानवती सक्सेना ने वर्षों तक मंच की शालीनता और महिला रचनाकार की गरिमा को मंचों पर कायम रखा। (प्रष्ठ 71)

लेखक को नए और पुराने साहित्यिक क्रियाकलापों की अच्छी जानकारी है। उसने लिखा है कि सन 1924 के आसपास प्रियंवदा देवी श्रीवास्तव के गीत ‘भ्रमर’ मासिक पत्रिका में प्रकाशित होते थे। पुस्तक में लेखक ने बताया है कि निरंकार देव सेवक जी ऐसे अकेले साहित्यकार थे जिन्होंने बाल रचनाओं पर पुस्तक प्रकाशकों से रॉयल्टी लेकर स्वयं को साहित्य जगत में स्थापित किया। (प्रष्ठ 69)

अगर बरेली महानगर की तरह अन्य नगरों और महानगरों की साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों पर निष्पक्ष समालोचनाऍं प्रकाश में आऍं, तो परिदृश्य को बेहतर बनाने में काफी मदद मिलेगी।

96 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

दस्तक भूली राह दरवाजा
दस्तक भूली राह दरवाजा
Suryakant Dwivedi
11 धूप की तितलियां ....
11 धूप की तितलियां ....
Kshma Urmila
ध्यान क्या है, ध्यान क्यों करना चाहिए, और ध्यान के क्या क्या फायदा हो सकता है? - रविकेश झा
ध्यान क्या है, ध्यान क्यों करना चाहिए, और ध्यान के क्या क्या फायदा हो सकता है? - रविकेश झा
Ravikesh Jha
..
..
*प्रणय*
तारे हैं आसमां में हजारों हजार दोस्त।
तारे हैं आसमां में हजारों हजार दोस्त।
सत्य कुमार प्रेमी
सोचता हूँ..
सोचता हूँ..
Vivek Pandey
सम्पूर्ण सनातन
सम्पूर्ण सनातन
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
2650.पूर्णिका
2650.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
नव प्रबुद्ध भारती
नव प्रबुद्ध भारती
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
ये बेजुबान हैं
ये बेजुबान हैं
Sonam Puneet Dubey
महाकाव्य 'वीर-गाथा' का प्रथम खंड— 'पृष्ठभूमि'
महाकाव्य 'वीर-गाथा' का प्रथम खंड— 'पृष्ठभूमि'
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
लोग कितनी आशा लगाकर यहाॅं आते हैं...
लोग कितनी आशा लगाकर यहाॅं आते हैं...
Ajit Kumar "Karn"
बुंदेली दोहा-गर्राट
बुंदेली दोहा-गर्राट
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
दोहा पंचक. . . नववर्ष
दोहा पंचक. . . नववर्ष
Sushil Sarna
जनाब, दोस्तों के भी पसंदों को समझो ! बेवजह लगातार एक ही विषय
जनाब, दोस्तों के भी पसंदों को समझो ! बेवजह लगातार एक ही विषय
DrLakshman Jha Parimal
अबला सबला हो गई,
अबला सबला हो गई,
sushil sarna
*** लहरों के संग....! ***
*** लहरों के संग....! ***
VEDANTA PATEL
अल मस्त फकीर
अल मस्त फकीर
Dr. P.C. Bisen
राम
राम
Sanjay ' शून्य'
नील छंद (वर्णिक) विधान सउदाहरण - ५भगण +गुरु
नील छंद (वर्णिक) विधान सउदाहरण - ५भगण +गुरु
Subhash Singhai
हम अपनी आवारगी से डरते हैं
हम अपनी आवारगी से डरते हैं
Surinder blackpen
माँ एक एहसास है......
माँ एक एहसास है......
Harminder Kaur
राष्ट्रीय विकास
राष्ट्रीय विकास
Rahul Singh
ये राष्ट्रभक्ति का उपहार प्रिये
ये राष्ट्रभक्ति का उपहार प्रिये
Acharya Shilak Ram
बर्फ
बर्फ
Santosh kumar Miri
" अगर "
Dr. Kishan tandon kranti
इंतहा
इंतहा
Kanchan Khanna
अज़ीज़ टुकड़ों और किश्तों में नज़र आते हैं
अज़ीज़ टुकड़ों और किश्तों में नज़र आते हैं
Atul "Krishn"
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
एक दिन बिना इंटरनेट के
एक दिन बिना इंटरनेट के
Neerja Sharma
Loading...