न जाने कहाँ दोस्तों की महफीलें खो गई ।
* भीतर से रंगीन, शिष्टता ऊपर से पर लादी【हिंदी गजल/ गीति
आप खुद को हमारा अपना कहते हैं,
हो गया कोई फलसफा
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
ज़िंदगी में बहुत कुछ सीखा है...
आकांक्षा पत्रिका समीक्षा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
चर्बी लगे कारतूसों के कारण नहीं हुई 1857 की क्रान्ति
'दीप' पढ़ों पिछडों के जज्बात।
सोभा मरूधर री
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
तुम्हें अहसास है कितना तुम्हे दिल चाहता है पर।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
अब तो ख्वाबों में आना छोड़ दो
शीर्षक:कोई चिट्ठी लिख देते