तुम बेबाक बोलो, देश कर्णधार
दुःख, दर्द, द्वन्द्व, अपमान, अश्रु
चलो कोशिश करते हैं कि जर्जर होते रिश्तो को सम्भाल पाये।
बस तेरे हुस्न के चर्चे वो सुबो कार बहुत हैं ।
अभी कहाँ विश्रांति, कार्य हैं बहुत अधूरा।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
एक अच्छे समाज का निर्माण तब ही हो सकता है
#माँ गंगा से . . . !
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
*पल्लव काव्य मंच द्वारा कवि सम्मेलन, पुस्तकों का लोकार्पण तथ