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31 Dec 2023 · 1 min read

___गोता

#2023 की आख़िरी ये कविता

नव हम, नव तुम
ये सारा आसमान
महकती धरा, इन फूल-फल
ये नए कोंपल पत्ते तन जड़ मिट्टी
उमंग उत्सव से सतरंगों को समेटते
खिला है ये सूरज लालीनुमा चित्रों में
भींगी दूब ओस से पानी बनके बनती
एक नई प्रसंग नदियों में नई तरंग लाती
लहरियाँ समेटते हुए गहराइयों को भरते
एक उत्साह शक्ति क्रांति लाती
संघर्ष के युद्धों में
जीत-हार का सहर्ष स्वीकारा है।
चहचहाती जुड़वा खग पंख फैलाएं
घोंसले बना रही।
नववर्ष इन्हें नतशिर कर
कविता रचती है
याद करते कुछ और
किन्तु बिहारी-अज्ञेय लिखा जाता
साहित्य धारा फूट पड़ती ( जैसे गंगोत्री से गंगा )
उसी धारा में कबीर – प्रेमचंद कि
कलमें बोलने लगते
अपने वेग से
नव-निर्माण करने
एक साम्राज्य रचने
संस्कृति सभ्यता विरासत किसी देश के
पनपनें व्यक्तित्व और खंडहर खड़ा है
कौन गोता लगाएंगा पहले
इन अभी के बनी पानी पानी से समुद्र में
भविष्य या अतीत!
नववर्ष मनाने
कौन ?
शास्त्र या साहित्य
पहले कौन!

३१/१२/२००३
२३:२९:००
:- वरुण सिंह गौतम

Language: Hindi
1 Like · 180 Views

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