मेरा दिल हरपल एक वीरानी बस्ती को बसाता है।
*राधेश्याम जी की अंटे वाली लेमन*
वो भी क्या दिन थे क्या रातें थीं।
ये तेरी बेवजह की बेरुखी अच्छी नहीं लगती
लला गृह की ओर चले, आयी सुहानी भोर।
द्वार खुले, कारागार कक्ष की
पहचान लेता हूँ उन्हें पोशीदा हिज़ाब में
दिन निकलता है तेरी ख़्वाहिश में,
umesh vishwakarma 'aahat'
मेरे हिस्से जब कभी शीशे का घर आता है...
इक झलक देखी थी हमने वो अदा कुछ और है ।
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
सफलता के संघर्ष को आसान बनाते हैं।
सुकून
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
इस घर में कोई रहता नही अब सिवाय कबूतरों के।