लापता सिर्फ़ लेडीज नहीं, हम मर्द भी रहे हैं। हम भी खो गए हैं
ऊसर धरती में जरा ,उगी हरी क्या घास .
कहते हैं पानी की भी याद होती है,
लोगों को और कब तलक उल्लू बनाओगे?
*साबुन से धोकर यद्यपि तुम, मुखड़े को चमकाओगे (हिंदी गजल)*
छोटो सो मेरो बाल गोपाल...
मेरी हर सोच से आगे कदम तुम्हारे पड़े ।
फिर चाहे ज़िंदो में.. मैं मुर्दा ही सही...!!
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चेहरे पे चेहरा (ग़ज़ल – विनीत सिंह शायर)
ऊपर वाला जिन्हें हया और गैरत का सूखा देता है, उन्हें ज़लालत क
मुखरित सभ्यता विस्मृत यादें 🙏
मधुशाला में लोग मदहोश नजर क्यों आते हैं
माँ बेटे के मिलन की खुशियां
सिर्फ़ मेरे लिए बने थे तो छोड़कर जाना क्यूं था,
यादों ने अक्सर उन्हीं को अपना माना है
*हवा कैसी चली तन·मन हुई हल·चल*
डिफाल्टर
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
साधना की मन सुहानी भोर से