जन्नत और जहन्नुम की कौन फिक्र करता है
नफ़रतों में घुल रही ये जिंदगी है..!
शहर में ताजा हवा कहां आती है।
मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
Tumhe Pakar Jane Kya Kya Socha Tha
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
राह में मिला कोई तो ठहर गई मैं
मौत बेख़ौफ़ कर चुकी है हमें
किसी अंधेरी कोठरी में बैठा वो एक ब्रम्हराक्षस जो जानता है सब