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18 May 2024 · 1 min read

संभव होता उम्मीदों का आसमान छू जाना

64…

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२

संभव होता उम्मीदों का आसमान छू जाना
छोड़े हम बैठे होते, बेमतलब का हकलाना
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हमको समझे होते,ऊपर से नीचे तक जिस दिन
मुमकिन उस दिन हो जाता,चाहत का और ठिकाना
#
बारिश का मौसम ,केवल खामोशी से आता है
यादों के जंगल में भीतर ,पैरहन भिगा जाना
#
लेकर अपनी सूरत रोनी सी कल से बैठे हैं
खुशियों का लगता, इस दीवाली लौट नहीं आना
#

सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com
7000226712
4.4.24.

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