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6 Aug 2024 · 5 min read

नाता

नाता

जया बरसों बाद भारत आई थी , माँ की अस्थियाँ बहाने गंगाजल में। माँ ने मरते हुए उससे वचन ले लिया था कि वह उनकी अस्थियों को भारत ज़रूर ले जायेगी, वहीं उनका घर है । अमेरिका तो कभी उनका घर हुआ ही नहीं , बस घर होने का भ्रम देता रहा ।

अजीब थी माँ, अपने माँ बाप से झगड़ कर यहाँ आई थी, आगे की पढ़ाई के लिए, फिर यहीं पापा मिल गए थे , वे केरला से थे, पंजाबी नाना नानी को आरम्भ में वे बिल्कुल पसंद नहीं थे । कहाँ उनकी गौरी चिट्टी बेटी और कहाँ यह काला सा लड़का । उनके नाती काले होंगे , यह सोचकर ही उनकी आत्मा दहल उठी थी । फिर जब जया हुई और उन्होंने उसे देखा तो उनका डर जाता रहा , गौरी, ऊँची नाती पाकर उन्होंने माँ को माफ़ कर दिया था, फिर पापा उनका इतना ध्यान रखते थे कि समय के साथ वह यह भी भूल गए थे कि वह उनके बेटा नहीं दामाद थे ।

माँ को बस हमेशा कुछ नया करने की धुन रहती , जीवन जैसे मुस्कुराने की चीज़ हो, वह कहतीं , “ इसे तटस्थ होकर जी, मन में हज़ारों सितारों का संगीत बज उठेगा । “ इतनी मस्ती में जीने वाली मम्मी को ब्रेन ट्यूमर हो गया । सिर दर्द, काीमो थेरेपी से वह थकने लगी , और उन्हें अपना अंत निकट लगने लगा ।

ऐसे में एक दिन उन्होंने जया से कहा,” तूं मानेगी नहीं पर अब मुझे वापिस घर जाना है। “

“ कौन से घर ? “
“ अपने घर , करनाल ।”
“ वहाँ अब क्या है , नाना नानी तो रहे नहीं, और घर भी बिक गया ।”
“ हाँ , पर मेरा शहर तो खड़ा है ।”

जया ने पापा से बात करी तो उन्होंने कहा , “ ठीक है,मैं त्याग पत्र दे देता हूँ, वहाँ किराए पर घर ले लेंगे ।”

पर जब तक पापा त्याग पत्र देते, तब तक माँ की तबियत और ख़राब होने लगी , और जाना कठिन होता चला गया ।

एक दिन, दोपहर का समय था, वे बिस्तर में पड़ी चुपचाप रो रही थी , जया ने देखा तो घबराकर पूछा ,
“ बहुत तकलीफ़ हो रही है ?”
उन्होंने छत देखते हुए कहा , “ घर जाना है मुझे, अपने देश जाना है, उसी मिट्टी में मिलना है , मेरी अस्थियों को गंगा में बहाना । कर सकेगी?”

“ हाँ माँ , आप जो कहो हो जायेगा ।”
“ सारी ज़िंदगी तुझे यही सिखाया है कि पूरी दुनिया अपनी है, और माना भी है , पर पता नहीं क्यों लग रहा है, मेरा सुकून वहाँ है ।”
“ मैं समझ रही हूँ माँ, और इसमें अजीब कुछ भी नहीं ।”
“ हाँ सारी मृगतृष्णा समाप्त हो गई, वहीं जाऊँ जहां से शुरुआत की थी ।”

माँ कीं अस्थियों के साथ वह अकेली भारत आई थी, वह उस भारत को जानना चाहती थी, जो माँ को इतनी शिद्दत से खींच रहा था ।

वह अस्थियों के साथ दो महीने तक एक तीर्थस्थल से दूसरे तीर्थस्थल, एक शहर से दूसरे शहर भटकती रही । दो महीने बाद वह ऋषिकेश पहुँची थी , यहीं माँ से उसे अंतिम विदा लेनी थी ।

नाव पर पंडित उससे मंत्र उच्चारित करवा रहा था , और समझा रहा था , शरीर के अंणु न जाने कहाँ कहाँ से आए थे और अब , इस मिट्टी में मिल फिर बिखर जायेंगे , जिस मिट्टी ने इस तन को सींचा था, अब उस मिट्टी में मिल जियेंगे । ये धरती आकाश , एक ही तो हैं , बस रूप अलग हैं ।

जया रात को होटल की लाबी में बैठी थी , उसका कमरे में अकेले रहने का मन नहीं था, इतने में एक युवक उसके सामने आकर खड़ा हो गया , “ जया जी ? “
“ जी , आप कौन ?”
“ अभिमन्यु । आज जिन पंडित जी ने आपसे संस्कार करवाये थे मैं उनका बेटा हूँ । “
जया ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, बस थकी आँखों से उसे देखती रही , अभिमन्यु ने कहा, “ पिताजी ने कहा , आप अकेली हैं और आपने आज अस्थियाँ विसर्जित की हैं , मैं आपका हाल चाल पूछ आऊँ , वे चिंतित है।”
“ मैं ठीक हूँ , उन्हें मेरा धन्यवाद कहना ।”
“ जी । “
वह मुड़कर जाने लगा तो जया ने कहा, “ रूक जाओ, बहुत अजीब लग रहा है, माँ को गए तो दो महीने से ज़्यादा हो गए, पर आज लग रहा है , कुछ भी नहीं बचा । “
“ वे हैं न , आपके विचारों में , मन में, शरीर में । आप चाहें भी तो उनसे दूर नहीं जा सकती , जैसे हम ही तो सृष्टि हैं , इससे दूर कैसे जायेंगे।”
जया मुस्करा दी, “ खड़े क्यों हो, बैठो न। “
अभिमन्यु बैठ गया तो जया ने पूछा, “ क्या पिओगे?”
“ वोडका ।”
जया हंस दी, ठीक है तुम वोडका लो और मैं काफ़ी लूँगी । सिर भारी हो रहा है ।

अभिमन्यु काफ़ी देर बैठा रहा, उनकी दुनिया भर की बातें होती रही । वह जाने लगा , तो उसने अपना कार्ड जया को देते हुए कहा, “ किराए पर गाड़ी देता हूँ , कल टैक्सी चाहिए हो तो मुझे फ़ोन कर देना ।”

वह चला गया तो वह फिर से अकेला अनुभव करने लगी , वह सोच रही थी , हो सकता है अभिमन्यु मुफ़्त की वोडका पीने और अपना बिज़नेस बढ़ाने आया हो, परन्तु फिर भी आज की शाम वह पूरी तरह से अकेले रहने से बच गई ।

पापा का फ़ोन आया ,” कैसी हो ?”
“ माँ कीं बहुत याद आ रही है ।”
“ माँ तो तुम्हारे साथ है, विचारों में, मन में, शरीर में । तुम चाहो भी तो उससे दूर नहीं जा सकती , जैसे हम ही तो सृष्टि हैं , इससे दूर कैसे जायेंगे?”

जया एकदम चौक उठी , यही तो अभिमन्यु ने कहा था ।

वह कमरे में आ गई, बत्ती खुली छोड़ दी , फ़ोन पर संगीत लगा दिया और सो गई । उठी तो पक्षी चहचहा रहे थे । बालकनी में आकर देखा, गंगा के पूर्व में सूर्योदय हो रहा था, उसने शांत मन से पहली बार हाथ जोड़ दिए, और मन ही मन कहा, मेरे पुरखों को जीवन देने वाले, मैं जहां भी रहूँ , तेरे साथ ही हूं।

उसने अभिमन्यु से टैक्सी मंगाई तो वह खुद ही गाड़ी चलाते हुए आ गया , “ तुम ख़ुद आ गए । “
“ जी , मैंने सोचा मैं ही आपको सुरक्षित एअरपोर्ट तक छोड़ दूँ , आप आई अपनी ज़िम्मेदारी से हैं पर आपको सुरक्षित एअरपोर्ट छोड़ना हमारी ज़िम्मेदारी बनती है। “
“ अच्छा । “ कहकर वह हंस दी ।

सारा रास्ते वे दुनिया भर की बातें करते रहे, चोटी का क्या अर्थ है, जनेऊ का क्या अर्थ है, भारत में इतनी ग़रीबी क्यों है, सड़कें इतनी ख़राब क्यों हैं , प्रश्नों उत्तरों का एक अजीब सिलसिला उनके बीच चलता रहा ।

एअरपोर्ट पर उतरते हुए उसने कहा ,” एक बात कहूँ , थोड़ी भावुक सी है, आई तो मैं माँ के देश में थी, पर जाते हुए लग रहा है , जैसे अपने देश से जा रही हूँ । “

अभिमन्यु मुस्करा दिया, “ यह देश हर उस व्यक्ति का है , जो इससे प्यार करता है, फिर आप तो भारतीय ही हो, सिर्फ़ पासपोर्ट अमेरिका का है । “

जया मुस्करा दी । जाती हुई जया को देखते हुए अभिमन्यु ने मन ही मन कहा , इसको पता नहीं है एक दिन इसके बच्चे भी खुद को ढूँढते हुए
यहाँ आयेंगे । हमारा स्वयं से भी तो नाता जन्मों का है , जिसे सारी ज़िंदगी ढूँढते फिरते हैं ।

—— शशि महाजन

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