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14 Aug 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . . उल्फत

दोहा पंचक. . . . . उल्फत

जीना है तो सीख ले ,विष पीने का ढंग ।
बड़े कसैले प्रीति के,अब लगते हैं रंग ।

छलिया आँखों में नहीं,वो पहले सा प्यार ।
झूठे वादों से भरा, उल्फत का संसार ।।

झूठी निकली कल्पना, झूठे निकले संग ।
स्वार्थ आवरण में घुटी, मन की मदन उमंग ।।

कैसे उसकी बात का, यह दिल करे यकीन ।
उल्फ़त के विश्वास का, धागा बड़ा महीन ।।

उल्फत में धोखे बहुत , खाता है इंसान ।
फिर भी बहके हुस्न के, जलवों में ईमान ।।

सुशील सरना / 14-8-24

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