Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 May 2024 · 1 min read

*साधारण दण्डक* (208) नवीन प्रस्तारित

साधारण दण्डक (208) नवीन प्रस्तारित

जिस पद के प्रत्येक पद में वर्ण संख्या 26 से अधिक हो उसे दंडक कहते हैं। दंडक अर्थात दंडकर्ता कहने का अभिप्राय यह है कि इसके प्रत्येक चरण इतने लंबे होते हैं कि इसके उच्चारण करने में मनुष्यों की सांस भर जाती है। यही एक प्रकार का दंड कहने मात्र भर का है। दंडक के दो मुख्य भेद हैं

1/- साधारण दंडक 2/- मुक्तक

अनंगशेखर—-
त्रेता दण्डक—– (27 वर्ण)
गणावली– 13 लग + ल (जरजरजरजरज)
यति — 14,13
अंकावली — 12-12-12-12-12-12-12-12-12-12-12-12-12-1

रुको नहीं कभी-कहीं बढ़े चलो सदा, विधान के प्रवाह में रहो सुजान।
अभी जिओ विशेष तोष मान के सखे, सुनाइए सुकंठ से सुगीत गान।।
नवीन प्रेरणा जगे विकास पंथ के, प्रयोग हो नये प्रधान छेड़ तान।
विवेकवान जो सुने तुम्हें यदाकदा, भरी सभा करें विशेष मान दान।।

रमे रहो लगे रहो, महान लक्ष्य को वरो, उठे हिया विधान के तरंग।
कभी न हार मान तू, नयी विधा निखार तू, रहे विशेष ही प्रधान ढंग।।
रखो नवीन भावना, तजो सभी उलाहना, उतंग शीर्ष में रह़ो मतंग।
प्रसिद्ध हो सुसिद्ध हो, अदोष ज्ञान वृद्ध हो, सुसाधना करो सदा असंग।।

सुहासिनी विलासिनी, तरंगिणी सुयामिनी, सुआसिनी नवीन छेड़ तान।
यशस्विनी तपस्विनी, कुमोदिनी मनस्विनी, सरोजिनी निशीथनी महान।।
सु स्वामिनी प्रवाहिनी, बनी सदैव भामिनी, प्रमोदिनी प्रवर्तिनी सुजान।
लुभावनी सुहावनी प्रशांतता प्रदायिनी, विहंगिनी पयस्विनी विधान।।

— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलास छंद महालय

Loading...