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13 Aug 2024 · 1 min read

◆#लघुकविता

◆#लघुकविता
◆सेवाभावी लाठी◆
【प्रणय प्रभात】
“निःशक्त बुढ़ापे का,
सहज संबल “लाठी।”
जो न चीखती है,
न झल्लाती है।
मूक, बधिर,
और चक्षुहीन होकर भी,
चुपचाप फ़र्ज़ निभाती है।।
#moral-
(सेवा मूक व शांत होनी चाहिए, बड़बोली नहीं)

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