कभी कभी ना
कभी कभी ना
ये भागती-सी जिंदगी
मेरे मन की चचंलता, व्याकुलता, अस्थिरता को एक ऊँचा सा ठहराव दे जाती है जिसमें
मेरा वो मन सिमटकर रह जाता है जो आसमां के धरातल को छू लेना चाहता है और पृथ्वी के भू-भाग से होकर समुद्र की गहराईयों का हो जाना चाहता है।।