हे दयानिधे! जरूरी नहीं, सभी आपके अनुरूप हो..
सुशील कुमार ‘नवीन’
संस्कृत देवभाषा है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत है तो संस्कार है, संस्कृति है। संस्कृत नहीं तो कुछ भी नहीं। प्रसिद्ध उक्ति भी है, भारतस्य प्रतिष्ठा द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा इति। साफ अर्थ है कि भारत की प्रतिष्ठा संस्कृत और संस्कृति इन्हीं दोनों में निहित है। संस्कृत-संस्कृति का मूल है। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें संस्कृत की उपयोगिता न रही हो। चिकित्सा शास्त्र, अर्थशास्त्र, विमानशास्त्र में सिद्धस्था हासिल करनी है तो संस्कृत को न केवल पढ़ना होगा, अपितु उसे अपने अंदर आत्मसात करना होगा।
जब हम सब इतना जानते हैं l देवभाषा की महत्ता समझते तो फिर गाहे बगाहे मिर्ची क्यों लग जाती है। अभी तो रुको जरा! अभी तो क्लाइमेक्स बाकी है। हरियाणा में एक प्रसिद्ध उक्ति है जिसी नकटी देवी, उसे ऊत पुजारी। अर्थात् जो जैसा व्यवहार करे, उसे उसी रूप में जवाब देना जरूरी है। यदि घर में कोई चाय-कॉफी न पीता हो तो क्या हम इन्हें घर में रखना बंद कर दें। मुझे यदि बैंगन का भरता और अरबी की सब्जी पसन्द नहीं है तो क्या शेष घरवाले इन्हें खाना छोड़ दें। मुझे इत्र लगाना रुचिकर नहीं तो जमाना मेरे लिए इसे प्रयोग करना छोड़ दे। कोई पारले फेब बर्बन का दीवाना है तो मुझ जैसे को पांच रुपये वाले स्वाद भरे शक्ति भरे पारले जी से बेहतर दुनिया में कोई बिस्किट ही नहीं लगता। मुझे खीर चूरमा पसंद है, तो किसी को इडली सांभर। जरूरी नहीं मुझे जो अच्छा लगता हो वो किसी और को अच्छा लगे। लोहे को लोहार की चोट जरूरी है तो सोने को स्वर्णकार की थपकी वाला दुलार।
आप भी आज सोचते होंगे आज मास्टरजी का दिमाग कैसे चकराया हुआ है। क्या-कहा कहे जा रहे हैं ? तो सुने! डीएमके के एक सांसद है। नाम है दयानिधि मारन। दादा का नाम करुणानिधि, भाई का नाम कलानिधि। महोदय ने सदन कार्यवाही के अनुवाद में अन्य भाषाओं के साथ संस्कृत को शामिल करने को लेकर आपत्ति जताई है। उनका कहना था कि आप संसद में दिए गए भाषण को संस्कृत नें अनुवाद करके टैक्सपेयर्स के पैसों को क्यों बर्बाद कर रहे हैं। हालांकि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से उन्हें जवाब उसी समय मिल गया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भारत की प्राथमिक भाषा रह चुकी है। यहां बात 22 भाषाओं की बात की है, सिर्फ संस्कृत की ही नहीं। आप मात्र संस्कृत पर ही आपत्ति क्यों जता रहे हैं। बात जब चर्चा में आई तो विरोध और मुखर हो गया है। संस्कृत को चाहने वाले खुलकर विरोध में उतर आए हैं।
तमिलनाडु में भाषाई राजनीति को लेकर मुखर रहने वाली डीएमके की तरफ से इस प्रकार का विरोध कोई पहला नहीं है। हिंदी के प्रयोग को लेकर लगातार आपत्तियां होती रही है। हिंदी ही नहीं सनातन धर्म पर भी उनकी जबान फिसलती रही है। अब देवभाषा संस्कृत विरोधी बयान से फिर चर्चा में आ गए हैं। संस्कृत भाषा देवभाषा है और देवभाषा का अपमान सम्पूर्ण भारत वासियों का अपमान है। कहा भी गया है- “भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा” अर्थात हमारे भारतवर्ष की आन, बान, व शान संस्कृत भाषा से है। भारत में जो भी ज्ञान है, संस्कार है, विविध संस्कृति है वह सारा का सारा ज्ञान संस्कृत भाषा में ही निहित है। चाहे वह वेद हों, पुराण हों, उपनिषद हों, धर्मशास्त्र हो, भाषा का विज्ञान व्याकरण शास्त्र हो, खगोल शास्त्र हो, ज्योतिष शास्त्र हो, वास्तुशास्त्र हो, योग हो, आयुर्वेद हो, नाट्यशास्त्र आदि हो सभी संस्कृत भाषा में ही हैं और इन सब की वैज्ञानिकता और ज्ञान से सारा विश्व परिचित ही है। श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धांत तो सभी प्रयोग करते ही है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी अर्थात माँ है और माँ का अपमान कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (सीएसयू) कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा है कि संसद के वर्तमान सत्र में डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने संस्कृत को लेकर जो मन गढ़न्त प्रश्न उठाए हैं, उसके खिलाफ सीएसयू केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय परिवार एक देश व्यापी आन्दोलन करेगा। गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने कहा है कि संस्कृत से ही मूल भारत की पहचान है। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पांडेय ने कहा कि दुनिया को पता है कि संस्कृत सनातन की भाषा है। संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं को पुष्ट करती है। इसलिए इसकी गुणवत्ता किसी से अधिक है।
अंत में दयानिधि का ज्ञान वर्धन भी कर दें। दयानिधि मारन ने कहा कि संस्कृत किसी भी राज्य की आधिकारिक भाषा नहीं है। बता दें संस्कृत उत्तराखंड औऱ हिमाचल प्रदेश की दूसरी आधिकारिक भाषाएं है. 2010 में उत्तराखंड ने तो 2019 में हिमाचल को अपनी दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया है। और सुन लें, आपका दयानिधि नाम ही संस्कृत का है। संस्कृत से इतनी ही दिक्कत है तो दयानिधि जी पहले अपना नाम ही बदल लें। आप को संस्कृत से दिक्कत है तो आप मत पढ़ें। जिसको पढ़ना होगा वो पढ़ लेगा।
‘ संस्कृते सकलं शास्त्रं,संस्कृते सकला कला |
संस्कृते सकलं ज्ञानं, संस्कृते किन्न विद्यते ||’
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’ , हिसार
hisarsushil@gmail.com
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।
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