तल्खियां
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
गुजर जाती है उम्र, उम्र रिश्ते बनाने में
एक गल्ती ने सांवरे की, नजरों से गिरा दिया।
चंद ख्वाब मेरी आँखों के, चंद तसव्वुर तेरे हों।
आ अब जेहन में बसी याद का हिस्सा मुक़र्रर कर लेते हैं
- जिंदगी हर बार मौका नही देती -
*"मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम"*
कुछ खोये बिना हमने पाया है, कुछ मांगे बिना हमें मिला है, नाज
कहने वाले कहने से डरते हैं।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
लेखक कि चाहत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
If we’re just getting to know each other…call me…don’t text.
सर्दियों में सूरज की लालिमा जैसी मुस्कान है तेरी।
ढोलकों की थाप पर फगुहा सुनाई दे रहे।