यूं ही नहीं कहते हैं इस ज़िंदगी को साज-ए-ज़िंदगी,
अज़ीज़ टुकड़ों और किश्तों में नज़र आते हैं
स्वच्छता
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
बिखरे सपनों की ताबूत पर, दो कील तुम्हारे और सही।
इस ज़िंदगी में जो जरा आगे निकल गए
हे कृष्णा
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
यदि कार्य में निरंतरता बनीं रहती है
सर्द ऋतु का हो रहा है आगमन।
मईया कि महिमा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
शहर की बस्तियों में घोर सन्नाटा होता है,
🚩अमर कोंच-इतिहास
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
मुझको नया भरम दे , नया साल दर पे हैं
पन्नें
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
*जिंदगी-भर फिर न यह, अनमोल पूँजी पाएँगे【 गीतिका】*
मेरी जिंदगी, मेरी आरज़ू, मेरा जहां हो तुम,
कुंडलिया छंद की विकास यात्रा