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31 May 2024 · 1 min read

यूं ही नहीं कहते हैं इस ज़िंदगी को साज-ए-ज़िंदगी,

यूं ही नहीं कहते हैं इस ज़िंदगी को साज-ए-ज़िंदगी,
ये ज़िंदगी जो सजी है बस संघर्षों के धूप-छांव में

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

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