झूठी आशा बँधाने से क्या फायदा
बाण मां के दोहे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
तेरे मेरे दरमियाँ ये फ़ासला अच्छा नहीं
क्या करे जनाब वक़्त ही नहीं मिला
खुशियों के दीप जलाना हैं! शुभ दीपावली
*क्या बात है आपकी मेरे दोस्तों*
यूं ही नहीं मिल जाती मंजिल,
दुश्मनों से नहीं दोस्तों से ख़तरा है
चाह यही है कवि बन जाऊं।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
*शादी में है भीड़ को, प्रीतिभोज से काम (हास्य कुंडलिया)*