Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Aug 2024 · 7 min read

हिंदी साहित्य के मुस्लिम कवि: रसखान

हिन्दी साहित्य के इतिहास में आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक अनेकों मुसलमान लेखकों ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में विशेष भूमिका निभाई है। उसीप्रकार कई हिन्दू रचनाकारों ने भी उर्दू साहित्य को समृद्ध करने का काम किया है। हिन्दी साहित्य के रीतिकाल में रीतिमुक्त धारा के कविओं में रसखान का महत्वपूर्ण स्थान है। रसखान के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में कई मतभेद पाया जाता है। कुछ लोगों ने ‘पिहानी’ अथवा ‘दिल्ली’ को इनका जन्म-स्थान बताया है। रसखान के जन्म संवत् में भी विद्वानों में मतभेद हैI कुछ विद्वान् इनका जन्म संवत् 1615 तथा कुछ 1630 मानते हैंI जन्म-स्थान तथा जन्म के समय की तरह रसखान के नाम एवं उपनाम के सम्बन्ध में भी अनेकों मतभेद है। हजारीप्रसाद व्दिवेदी के मतानुसार रसखान के दो नाम हैं – ‘सैय्यद इब्राहिम’ और ‘सुजान रसखान’। रसखान एक पठान जागीरदार के पुत्र थे। संपन्न परिवार में पैदा होने के कारण उनकी शिक्षा उच्चकोटी की थी। रसखान को फारसी, हिन्दी एवं संस्कृत का अच्छा ज्ञान था जिसे उनहोंने ‘श्रीमदभागवत्’ का फारसी अनुवाद करके साबित कर दिया था। रसखान की कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए हैं। ‘सुजान रसखान’ और ‘प्रेमवाटिका’। ‘सुजान रसखान’ में 139 सवैया तथा ‘प्रेमवाटिका’ में 52 दोहे हैंI कहा जाता है कि दिल्ली में रसखान एक बनिए के पुत्र से असीम प्रेम करते थेI कुछ लोगों ने रसखान से कहा कि यदि तुम इतना प्रेम भगवान से करोगे तो तुम्हारा उद्धार हो जायेगा। फिर रसखान ने पूछा कि भगवान हैं कहा? तब किसी ने उन्हें कृष्ण भगवान का एक तस्वीर दिया जिसे लेकर रसखान भगवान की तलाश में ब्रज पहुँच गए। वहाँ उसी चित्रवाला स्वरूप का उन्हें दर्शन हुआ। बाद में उनकी मुलाकात गोसाईजी से हुई जिन्होंने रसखान को अपने मंदिर में बुला लिया। रसखान वहीं रहकर कृष्ण की लीलागान करने लगे और आगे चलकर उन्हें गोपी भाव की सिद्धि प्राप्त हुई। जिसकी चर्चा उन्होंने ‘प्रेमवाटिका’ में किया है। रसखान को ‘रस’ की ‘खान’ कहा जाता है। इनके काव्य में ‘भक्ति’ और ‘श्रृंगार’ रस दोनों की प्रधानता है। रसखान मूलतः श्याम भक्त हैं और भगवान के ‘सगुण’ तथा ‘निर्गुण’ दोनों रूपों के प्रति श्रद्धालु हैं। वे आजीवन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को काव्य के रूप में वर्णन करते हुए ब्रज में ही निवास किए। रसखान कृष्ण की बालरूप का वर्णन करते हुए कहते हैं-

“धुरी भरे अति शोभित श्यामजू तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरे अंगना पग पैजनी बाजति पीरी कछोटी।I”

रसखान तो कृष्ण भक्ति में इतने समर्पित हो गए थे कि मनुष्य से अधिक भाग्यशाली उस पक्षी को मानते थे जिसे एक रोटी के टुकड़े के बहाने भगवान श्रीकृष्ण का स्पर्स हो जाता है। वह भी पक्षी कौन? ‘कौआ’ जिसे आम तौर पर कभी भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है, उसी पक्षी का कृष्ण से स्पर्श हो जाने के कारण उसे भाग्यशाली मानते हुए रसखान कहते हैं –

“वा छवि को रसखान विलोकत वारत काम कलानिधि कोटि।
काग के भाग बड़े सजनी, हरी हाथ सौं ले गयो माखन रोटी”II

इन पंक्तियों में वे कृष्ण की बाल स्वरूप का चित्रण करते हुए उसपर कामदेव के करोड़ों कलाओं को निछावरकर देते हैं। वे कृष्ण के प्रति इस तरह से समर्पित थे कि उन्हें यत्र-तत्र सर्वत्र कृष्ण ही कृष्ण दिखाई देते थे। कृष्ण के बिना जैसे जिंदगी अधूरी थी। उनके रग-रग में कृष्ण बसे थे। वे अगले जीवन में भी चाहे जिस रूप में धरती पर जन्म लें, कृष्ण की समीपता की अभिलाषा मन में सदैव पाले हुए थे। जन्म चाहे मनुष्य के रूप में हो या पशु के, पत्थर हो या पक्षी ही क्यों न बनें लेकिन निवास कृष्ण के समीप ब्रज में ही होना चाहिएI

“मानुष हो तो वही रसखान, बसों बृज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पशु हो तो कहा बस मेरो, चरो नित नन्द की धेनु मंझारण।I
पाहन हौं तो वही गिरी को, जो धरयो कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हो तो बसेरो करो नित, कालिंदी फूल कदम्ब की डारन।I”

रसखान कृष्ण के अनेक लीलाओं का वर्णन कियें हैं – कुंजलीला, पनघटलीला, वनलीला आदि। ‘कृष्णबाललीलाओं’ के वर्णन में लिखे गये उनके पद को गाकर मन आनंदित हो जाता है।

“कर कानन कुंडल मोर पखा, उर पै बनमाल बिराजती हैं।
मुरली कर में अधरा मुसुकानी, तरंग महाछबि छाजत हैंII
रसखानी लखै तन पीतपटा, सत दामिनी की दुति लाजती हैंI
वह बाँसुरी की धुनी कानी परे, कुलकानि हियो तजि भाजती हैII”

रसखान कवि कहते हैं कि जिस ब्रह्म को ब्रह्मा, विष्णु, गणेश, महेश आदि सभी देव निरंतर जाप करते हैं, जिसे सभी देवि-देवता एवं वेद-पुराण अनंत, अखंड, अछेद और अभेद बताते हैं, नारद और व्यास मुनि जिनकी स्तुति-गान करते हैं, उस ब्रह्म को ग्वालबालाएँ थोड़ी सी छांछ के लिए नाचने के लिए विवश कर देती हैं।

“सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं।I
नारद से सुक व्यास रटै, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरिया, छछिया भर छाछ पै नाच नचावैं।I”

ब्रह्म में समर्पण का शब्दों में चित्रित करने की ये अनोखी कला, रसखान के अतिरिक्त किसी भी कवि की रचनाओं में नहीं मिलता हैI रसखान की भक्ति श्रीकृष्ण में है। वे कृष्ण के लिए त्रिलोक का त्याग करने को तैयार है। वे नन्द बाबा के गायों को चराने में आठों सिद्धियों और नवों निधिओं के सुख को भी भुला सकते हैंI

“या लकुटी अरु कमरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठ्हूँ सिद्धि नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं।I
रसखान कबौ इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौंII”

रसखान व्रज के वनों एवं उपवनों पर सोने के करोड़ों महल निछावर करने को तैयार हैं।

भक्ति की महिमा में मोक्ष के अनेक साधन बताये गए हैं। जैसे – कर्म, ज्ञान और उपासना। रसखान के अनुसार – भक्ति का प्रेम इन सब में श्रेष्ठ है। इसी अभिप्राय से रसखान ने इस परम प्रेम को कर्म आदि से परे कहा है। रसखान की मान्यता है कि जिसने प्रेम को नहीं जाना, उसने कुछ भी नहीं जाना और जिसने प्रेम को जान लिया, उसके लिए कुछ भी जानने योग्य नहीं हैI संसार में जितने भी सुख है, उन सब में भक्ति का सुख सबसे बढ़कर है। दुःख के नाश होने और आनंद की प्राप्ति के लिये ज्ञान, ध्यान आदि जितने भी साधन बतलाएं गए है, वे सभी प्रेम-भक्ति के बिना निष्फल है। सामान्य रूप से जीव के चार पुरुषार्थ बताया गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन चारों में मोक्ष सबसे महान है परन्तु प्रेम-भक्ति की तुलना में मोक्ष भी तुक्ष है। प्रेम भक्ति की श्रेष्ठता का एक कारण और भी है वह यह कि इस संसार में जितने भी साधन और साध्य हैं वे सभी भगवान के अधीन हैं और भगवान स्वयं प्रेम के वश में हैं। वे अपनी रचनाओं में कहते हैं –

“प्रेम प्रेम सब कोऊ करत, प्रेम न जानत कोय।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोय।I”

रसखान ने समस्त शारीरिक अवयवों तथा इन्द्रियों की सार्थकता तभी मानी है जिससे वे प्रभु के प्रति समर्पित रह सकें।

“जो रसना रस ना बिलसै तेविं बेहू सदा निज नाम उचारन।
मो कर नीकी करे करनी जु पै कुंज कुटीरन देह बुहारन।
सिद्धि – समृद्धि सबै रसखानि लहौं ब्रज रेणुका अंग सवारन।
खास निवास मिले जु पै तो वही कालिंदी कूल कदम्ब की डारन।I”

कृष्ण के भक्ति में डूबे कवि रसखान अपने आराध्य से विनती करते हुए कहते हैं कि मुझे सदा आपके नाम का स्मरण करने दो ताकि मुझे मेरी जिह्वा को रस मिले। मुझे अपने कुंज कुटीरों में झाड़ू लगाने दो ताकि मेरे हाथ सदा अच्छे कर्म कर सकें, व्रज की धूल से अपना शरीर सवांर कर मुझे आठों सिद्धियों का सुख लेने दो और निवास के लिए मुझे विशेष जगह देना ही चाहते हो तो यमुना के किनारे कदम्ब की डाल ही दे दो जहाँ आपने (कृष्ण) अनेकों लीलाएँ रची हैं।
रसखान के पदों में कृष्ण के अलावा कई और देवताओं का भी ज़िक्र मिलता है। शिवजी की सहज कृपालुता की ओर संकेत करते हुए वे कहते हैं कि उनकी कृपा दृष्टि संपूर्ण दुखों का नाश करने वाली है-

“यह देखि धतूरे के पात चबात औ गात सों धूलि लगावत है।
चहुँ ओर जटा अंटकै लटके फनि सों कफ़नी पहरावत हैं।I
रसखानि गेई चितवैं चित दे तिनके दुखदुंद भाजावत हैं।
गजखाल कपाल की माल विसाल सोगाल बजावत आवत है।I“

उन्होंने गंगा जी की महिमा का भी वर्णन किया है –

“बेद की औषद खाइ कछु न करै बहु संजम री सुनि मोसें।
तो जलापान कियौ रसखानि सजीवन जानि लियो रस तोसें।
एरी सुघामई भागीरथी नित पथ्य अपथ्य बने तोहिं पोसें।
आक धतूरो चबात फिरै विष खात फिरै सिव तेरै भरोसें।“

इस महान साहित्यकार की देहावसान संवत 1671 के बाद मथुरा – वृदावन में माना जाता है। उन्होंने स्वयं कहा है –

“प्रेम निकेतन श्री बनहि आई गोवर्धन धाम।
लहयो शरण चित चाहि कै, जुगत स्वरुप ललाम।I”

इसप्रकार हम देखते हैं कि धर्म और जाति से ऊपर उठकर हिंदू कवि और लेखकों ने उर्दू के माध्यम से तथा मुस्लिम लेखकों एवं कवियों ने हिन्दी में अपनी रचनाएँ देकर साहित्य और समाज दोनों को समृद्ध किया है। इस विरासत से हमें आज की बिगड़ती राजनितिक माहौल में बहुत कुछ सीखने को मिलता है –

“हम राम कहें या रहीम कहें दोनों का सम्बन्ध अल्लाह से है।
हम दीन कहें या धरम कहें मनसा तो उसी की राह से है।I”

जय हिंद

Language: Hindi
1 Like · 66 Views

You may also like these posts

"दुनिया को पहचानो"
Dr. Kishan tandon kranti
वो ही
वो ही
Ruchi Sharma
चुप रहने की आदत नहीं है मेरी
चुप रहने की आदत नहीं है मेरी
Meera Thakur
घर आना दोस्तो
घर आना दोस्तो
मधुसूदन गौतम
दीवाल पर लगी हुई घड़ी की टिकटिक की आवाज़ बनके तुम मेरी दिल क
दीवाल पर लगी हुई घड़ी की टिकटिक की आवाज़ बनके तुम मेरी दिल क
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
रोशनी चुभने लगे
रोशनी चुभने लगे
©️ दामिनी नारायण सिंह
नेता पलटू राम
नेता पलटू राम
Jatashankar Prajapati
बेशर्मी के हौसले
बेशर्मी के हौसले
RAMESH SHARMA
देखते देखते मंज़र बदल गया
देखते देखते मंज़र बदल गया
Atul "Krishn"
*छपवाऍं पुस्तक स्वयं, खर्चा करिए आप (कुंडलिया )*
*छपवाऍं पुस्तक स्वयं, खर्चा करिए आप (कुंडलिया )*
Ravi Prakash
सबका हो नया साल मुबारक
सबका हो नया साल मुबारक
अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'
अगर पात्रता सिद्ध कर स्त्री पुरुष को मां बाप बनना हो तो कितन
अगर पात्रता सिद्ध कर स्त्री पुरुष को मां बाप बनना हो तो कितन
Pankaj Kushwaha
कैसे?
कैसे?
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
दूर भाग जाएगा ॲंधेरा
दूर भाग जाएगा ॲंधेरा
Paras Nath Jha
3735.💐 *पूर्णिका* 💐
3735.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
उलझन से जुझनें की शक्ति रखें
उलझन से जुझनें की शक्ति रखें
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
#Motivational quote
#Motivational quote
Jitendra kumar
तेरी कुर्बत में
तेरी कुर्बत में
हिमांशु Kulshrestha
13. पुष्पों की क्यारी
13. पुष्पों की क्यारी
Rajeev Dutta
चाहकर भी जता नहीं सकता,
चाहकर भी जता नहीं सकता,
डी. के. निवातिया
प्रिये
प्रिये
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
ଆସନ୍ତୁ ଲଢେଇ କରିବା
ଆସନ୍ତୁ ଲଢେଇ କରିବା
Otteri Selvakumar
वो पिता है साहब , वो आंसू पीके रोता है।
वो पिता है साहब , वो आंसू पीके रोता है।
Abhishek Soni
मेरी मां।
मेरी मां।
Taj Mohammad
Everyone enjoys being acknowledged and appreciated. Sometime
Everyone enjoys being acknowledged and appreciated. Sometime
पूर्वार्थ
तो गलत कहाँ हूँ मैं ?
तो गलत कहाँ हूँ मैं ?
नेहा आज़ाद
बेवफ़ाई
बेवफ़ाई
Sidhant Sharma
सच का सिपाही
सच का सिपाही
Sanjay ' शून्य'
ड्यूटी
ड्यूटी
Dr. Pradeep Kumar Sharma
बचपन की यादें
बचपन की यादें
Anamika Tiwari 'annpurna '
Loading...