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20 Jul 2024 · 1 min read

उससे कोई नहीं गिला है मुझे

उससे कोई नहीं गिला है मुझे
बेरुखी उसकी इक सज़ा है मुझे

अब ख़िज़ाँ भी बहार सी लगती
जाने किसका नशा हुआ है मुझे

बोझ चाहे उठा न पाए दिल
हौसला पर न छोड़ना है मुझे

मैं तो बहता हुआ समंदर हूँ
क्यों समझता वो बुलबुला है मुझे

मैं दिखा दूँगी आसमां छूकर
अपनी हिम्मत का वास्ता है मुझे

उसकी दादागिरी का क्या कहना
बेवफ़ा खुद है, बोलता है मुझे

मैं हूँ तन्हा कहाँ ज़माने में
तेरी यादों का जो सिला है मुझे

‘अर्चना’ है सुकून बस इतना
जो मिला कम नहीं मिला है मुझे

डॉ अर्चना गुप्ता
20.07.2024

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