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24 Jun 2024 · 1 min read

मनुष्य बनिए

स्वस्थ्य तन मन है नहीं,
स्वस्थ्य जन कैसे सृजित हों।
स्वस्थ्य जब भोजन नहीं,
क्यों न मानव दिग्भ्रमित हो।।

फिर रहे बाजार में,
बड़के सौदाई बने।
जो मनुज ही बन न पाया,
कैसे वो भाई बने।।

तन है मैला मन में विष्टा,
क्या बने उनकी प्रतिष्ठा।
चल दिए धन हाथ लेकर,
खरीदने वो मनुज निष्ठा।।

घूमते विक्षिप्त होकर,
मतलबी उद्देश्य लेकर।
है बड़े बेचैन ” संजय”,
पशु जो है वो मनुज होकर।।

Language: Hindi
1 Like · 105 Views

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