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17 Jun 2024 · 1 min read

अंतर्मन विवशता के भवर में है फसा

अंतर्मन विवशता के भवर में है फसा
कई दफा खुद पर यूँ ही है हंसा

लब्ज़ हार गया थक गया हालतों से
पर उतार न सका नशा वो अजीब सा

रूबरू हो कर आबरू से बे आबरू हो गये
फिर भी अपने जाल में खुद को ही है कसा

कब तलक खेलोगे अकेले खुद का ही खेल
जब लगना ही है जीत कर भी हार का ठसा

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