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12 Jun 2024 · 1 min read

#उलझन

#उलझन

रूत आये रूत जाये_हर बरस यारो।
ना ठहरेंगी उलझने_जीवन में यारो।।

कुछ माह सर्दी का_जहाँ में बसना।
मीठी मीठी थंडी थंडी_आहट देकर जाना।।

फिर रूत गर्मी दे_उलझनो का चटका।
ओ भी ठहर जाता है_जो था बेकार भटका।।

आयेगा खुबसूरत_ यादो का सावन।
रिम झीम बूँदे गिरे_तृप्त हुये धरती गगन।।

जो भी जनमा_धरती पे यारो।
उलझनों में दिखेगा _अटका हुआ प्यारो।।

खुशियाँ दो खुशियाँ लो_हर मौसम प्यार करो।
सबको जाना है_जीवन मुसाफिर है यारो।।

रूत आये रूत जाये_हर बरस यारो।
ना ठहरेंगी उलझनें _जीवन में यारो।।

स्वरचित – कृष्णा वाघमारे, कुंभार पिंपळगाव, ता. घनसावंगी जि. जालना 431211, महाराष्ट्र.

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