मुख़ातिब यूँ वो रहती है मुसलसल
पछुआ हवा
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
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*स्वजन जो आज भी रूठे हैं, उनसे मेल हो जाए (मुक्तक)*
कुछ कदम मैं चलूँ, कुछ दूरियां तुम मिटा देना,
दुखड़े छुपाकर आ गया।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
ग़ज़ल _जान है पहचान है ये, देश ही अभिमान है ।
घमंड की बीमारी बिलकुल शराब जैसी हैं
मात्रा भार - उच्चारण आधार पर(मात्रिक छंदो में )
130 किताबें महिलाओं के नाम
① ख़्वाब से जुड़ चुका है इस दरजा,
चीखें अपने मौन की
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो,