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31 May 2024 · 1 min read

अभ्यर्थी हूँ

जीवन के पाठ प्रारूपों की, परीक्षा का अभ्यर्थी हूँ,
रोटी की जुगाड़ से बचे हुए, समय का एक शिक्षार्थी हूँ,
गीत, गीतिका, ग़ज़ल, शेर की दुनियाँ में झाँकता एक बच्चा,
भाव करें जो व्यक्त उन्हीं, संघर्षों का संघर्षी हूँ |
सीधा सरल घटे जो मन में, कलम वही लिख देती है,
भावों की, अंगारों की कहानी, कागज़ से कह देती है,
है अनुकम्पा माँ वाणी की, जो थोडा बहुत लिख लेता हूँ,
निश्चल, निर्मल, निपट शांत, सन्यासी मन का साक्षी हूँ |

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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Books from दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
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