ऐसे क्यों लगता है,

ऐसे क्यों लगता है,
तुम्हारी साथी न होकर,
तुम्हारा मोबाइल होते तो ज़्यादा अच्छा होता।
हर पल तुम्हारे हाथों में रहते,
तुम्हारी उंगलियों की छुअन से जागते-सोते,
हर सवाल का जवाब तुरंत देते,
बिना शिकायत, बिना थकान, बस तुम्हारे होते।
ना कोई रूठना, ना मनाना,
ना वक्त की पाबंदी का बहाना,
बस जब चाहो हमें देख लेते,
अपनी दुनिया में हमें रख लेते।
पर फिर सोचते हैं,
अगर मोबाइल होते तो शायद,
एहसासों से कोसों दूर होते…
पर तुम्हारे दिल के करीब तो रहते,
–कांचन मालू