9–🌸छोड़ आये वे गलियां 🌸

कविता -9–छोड़ आये वो गलियां”..
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🔸यादों का एक पिटारा है.
गहरे दबा मन के भीतर
कहो तो इसे खोलूं – देखूँ
या फिर आगे बढ़ जाऊँ?
कुछ यादें हैं कुछ भूलें हैं.
नादानी का बचपन बीता
रिश्तों की छाया में जीता
रोते हँसते जीवन बीता
एक खाने में दबे हैं किस्से.
मिलने और बिछड़ने के.
कुछ मीठे हैं कुछ कड़वे भी
हर स्वाद अभी भी जिन्दा है
मिले कभी कुछ घाव गहरे.
हैं अपने दुख दर्द के पहरे
भूली गलियाँ सvब बिसरा के
बंद कर दी मन की खिड़की
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महिमा शुक्ला
इंदौर