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18 May 2024 · 1 min read

देखो आई अजब बहार

देखो आई अजब बहार उठी फूलों में महकार
कल कल बहती है बहती है नदियों की धार

एक तो यह ठंडी हवा दूजे यह मौसम
खुश है यह सारी दुनिया मिट गए सारे गम
देखो नाच रहे हैं मोर मस्त हुए डंगर ढोर
कल कल बहती है बहती नदियों की तरह
कोयल गाती है गाती है भंवरा कर गुंजार

भूल भूल गए माता-पिता भूल गई सहेली
कर करके याद उनको रो रही अकेली
कैसे करूं मैं संतोष बता क्या है मेरा दोष
भूलू कैसे और कब तक करूं इंतजार

पहले पता था मुझे गम तुम करोगी
हौसला बलदेव का कम तुम करोगी
अभी भी वापस जाओ दौड़ भैया लक्ष्मण आए तुमको छोड़
रहकर महलों में महलों में जिंदगी गुजार

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