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30 Jun 2016 · 1 min read

इस दानव को मानव कहलाने दो — कविता

कविता

इस दानव को मानव कहलाने दो

मेरी तृ्ष्णाओ,मेरी स्पर्धाओ,
मुझ से दूर जाओ, अब ना बुलाओ
कर रहा, मन मन्थन चेतना मे क्र्न्दन्
अन्तरात्मा में स्पन्दन
मेरी पीःडा मेरे क्लेश
मेरी चिन्ता,मेरे द्वेश

मेरी आत्मा
, नहीं स्वीकार रही है
बार बार मुझे धिक्कार रही
प्रभु के ग्यान का आलोक
मुझे जगा रहा है
माया का भयानक रूप
नजर आ रहा है
कैसे बनाया तुने
मानव को दानव
अब समझ आ रहा है
जाओ मुझे इस आलोक में
बह जाने दो
इस दानव को मानव कहलाने दो

Language: Hindi
478 Views

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