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3 May 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

दर्द की बूँद न हो रवानी में ।
नूर आता नहीं कहानी में ।

उसका हँसना मजाक ही होगा,
आँख डूबी नहीं जो पानी में ।

मूछ सूखी पै ताव दे दे कर,
वक्त खोया है बदगुमानी में ।

ज़ख्म भरते हैं रोज़ सदियों के,
एक लम्हे की शादमानी में ।

वो जो काँटे निकाले ग़ैरों के,
फूल खिलते हैं उस जवानी में ।

००००००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी

Language: Hindi
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