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3 May 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

फल रही है अजाब की दुनिया ।
सूखती है सवाब की दुनिया ।

कोई काँटा उन्हें नहीं चुभता,
जी रहे जो बनाब की दुनिया ।

आब में भी है एक सेहरा-सा,
और सेहरे में आब की दुनिया ।

जबकि दिल में भरा अँधेरा है,
क्यों है चेहरों पै ताब की दुनिया ?

शर्म लगती है सिर्फ़ बूढ़ों को,
बेहया है शबाब की दुनिया ।

चंद हाथों में कैद-सी लगती,
आज के इंतख़ाब की दुनिया ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।

Language: Hindi
1 Like · 117 Views
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