याद - दीपक नीलपदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
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*होली में लगते भले, मुखड़े पर सौ रंग (कुंडलिया)*
आए थे बनाने मनुष्य योनि में पूर्वजन्म की बिगड़ी।
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मुझे हर वक्त बस तुम्हारी ही चाहत रहती है,
दिल समझता नहीं दिल की बातें, - डी. के. निवातिया
चाहत थी कभी आसमान छूने की
Chalo phirse ek koshish karen
हम अपनों से न करें उम्मीद ,
जिन्दगी पहलू नहीं पहेली है।
कठिन समय आत्म विश्लेषण के लिए होता है,
दुःख और मेरे मध्य ,असंख्य लोग हैं