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24 Apr 2024 · 1 min read

बदल रहा परिवेश

बढ़ती जाती आपाधापी
बदल रहा परिवेश हमारा।

अंधाधुंध कट रहे हैं वन
बढ़ता जाता सतत प्रदूषण
होती जाती हवा विषैली
वनीकरण अब केवल नारा। बदल रहा परिवेश हमारा

ऊंचाई की होड़ लगाए
कंक्रीटों के वन उग आए
ममता और स्नेह से वंचित
बच्चे निकल रहे आवारा। बदल रहा परिवेश हमारा

पापा सुबह गए थे आफिस
नहीं शाम को आए वापिस
मम्मी दफ्तर से घर आकर
क्लब जातीं, क्लब उनको प्यारा। बदल रहा परिवेश हमारा

हुआ प्रदूषित भोजन – पानी
दादी कहती अब न कहानी
पद – पैसे की भागदौड़ में
रिश्तेदार हुआ बेचारा। बदल रहा परिवेश हमारा

टीवी रखा हुआ है घर-घर
धारावाहिक आते सुखकर
विज्ञापनी संस्कृति ने है
भारतीयता को ललकारा। बदल रहा परिवेश हमारा

जागो, बुद्धिजीवियों जागो
नींद कुम्भकर्णी निज त्यागो
किंकर्तव्यविमूढ़ बनो मत
करो यत्न महके जग सारा। बदल रहा परिवेश हमारा

महेश चन्द्र त्रिपाठी

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