इज़राइल और यहूदियों का इतिहास
सूरवीर
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
बेहद खुशनुमा और हसीन से हो गए हैं ये दिन।
बिखरे खुद को, जब भी समेट कर रखा, खुद के ताबूत से हीं, खुद को गवां कर गए।
मां का आंचल और पिता प्रेम
*थोड़ा-थोड़ा दाग लगा है, सब की चुनरी में (हिंदी गजल)
हे कौन वहां अन्तश्चेतना में
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
कविता-आ रहे प्रभु राम अयोध्या 🙏
मिली वृक्ष से छांह भी, फल भी मिले तमाम
Value the person before they become a memory.
के उसे चांद उगाने की ख़्वाहिश थी जमीं पर,
मानव निर्मित रेखना, जैसे कंटक-बाड़।