Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Mar 2024 · 2 min read

#लघुकथा

#लघुकथा
■ एक बड़ा सा पार्सल
【प्रणय प्रभात】
डोर-बेल बजते ही रीना ने दरवाज़ा खोला। सामने कूरियर एजेंट खड़ा था। हाथ में बड़ा सा एक पार्सल लिए। मायूस सी रहने वाली रीना चकित थी। इन दिनों न कोई प्रसंग न प्रयोजन। फिर यह किसने भेजा और क्यों? पार्सल पर नाम-पता उसी का था। उसने काग़ज़ पर साइन कर के पार्सल लिया और धन्यवाद देते हुए दरवाज़ा लगा लिया।
चेहरे पर छाई चिर-परिचित उदासी फ़िलहाल उत्सुकता के नीचे दबी थी। रीना ने आनन-फानन में सोफे पर बैठ कर पार्सल को खोला। अच्छी तरह से पैक बड़े से डिब्बे में दूसरा डिब्बा नज़र आया। लगभग आधे घण्टे की क़वायद के बाद 11वें डिब्बे में से लाल रंग का 12वां छोटा डिब्बा निकला। इस डिब्बे में था सुर्ख लाल मखमल का बना एक प्यारा सा दिल। साथ में एक छोटा सा पत्र भी। डिब्बे के खुलते ही कमरे को एक मीठी सी खुशबू ने महका दिया। जो पत्र और दिल से आ रही थी।
छोटे से पत्र में केवल इतना सा लिखा था कि- “नन्हे से दिल पर इतनी सारी उदासी की परतों का बोझ क्यों? कृपया उसे खोलिए और खुल कर मुस्कुराने दीजिए। माता-पिता को कोविड त्रासदी में खोने के बाद ख़ुद को पूरी तरह तन्हा मानने वाली रीना की आँखों में अब एक चमक सी थी। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान भी। पार्सल भेजने वाले का एक साल बाद भी उसे कुछ पता नहीं चला है। मगर अब रीना का ज़िन्दगी के प्रति रुख पूरी तरह बदल चुका है। उसे लगता है कि कोई तो है, जिसे उसकी परवाह है।
वहीं दूसरी ओर उसकी खुशी से खुश उसकी मकान मालकिन भी है। जो कोरोना काल में अपने पति को खोने के बाद भी अपना साहस नहीं खोई थी। उसे सुक़ून था कि उसकी एक छोटी सी पहल ने एक बड़ा कारनामा कर दिखाया मुझे लगता है कि ऐसी कोई पहल आप भी कर सकते हैं। मेरी तरह संवेदनशील हों तो।।
👌👌👌👌👌👌👌👌👌

1 Like · 163 Views

You may also like these posts

इन दिनों शहर में इक अजब सा माहौल है,
इन दिनों शहर में इक अजब सा माहौल है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जीवन के सच तो शब्द होते हैं।
जीवन के सच तो शब्द होते हैं।
Neeraj Agarwal
भगवान ने कहा-“हम नहीं मनुष्य के कर्म बोलेंगे“
भगवान ने कहा-“हम नहीं मनुष्य के कर्म बोलेंगे“
कवि रमेशराज
"फ़ुरक़त" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
हम हंसना भूल गए हैं (कविता)
हम हंसना भूल गए हैं (कविता)
Indu Singh
हर वक्त बदलते रंग
हर वक्त बदलते रंग
Chitra Bisht
तुम,दर-दर से पूछ लो
तुम,दर-दर से पूछ लो
Inder Bhole Nath
पत्थर - पत्थर सींचते ,
पत्थर - पत्थर सींचते ,
Mahendra Narayan
- वो लड़की बदनाम कर गई -
- वो लड़की बदनाम कर गई -
bharat gehlot
गुहार
गुहार
Sonam Puneet Dubey
*
*"बापू जी"*
Shashi kala vyas
तुम हो एक आवाज़
तुम हो एक आवाज़
Atul "Krishn"
परिस्थिति से भागने के बजाय उसे जानने में हमें उत्सुक होना चा
परिस्थिति से भागने के बजाय उसे जानने में हमें उत्सुक होना चा
Ravikesh Jha
आज भी कभी कभी अम्मी की आवाज़ सुबह सुबह कानों को सुन
आज भी कभी कभी अम्मी की आवाज़ सुबह सुबह कानों को सुन
shabina. Naaz
*टूटे जब दो दॉंत एक दिन, गुड़िया रानी रोई (बाल कविता)*
*टूटे जब दो दॉंत एक दिन, गुड़िया रानी रोई (बाल कविता)*
Ravi Prakash
कुरुक्षेत्र में द्वंद का कारण
कुरुक्षेत्र में द्वंद का कारण
Anant Yadav
3541.💐 *पूर्णिका* 💐
3541.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
शिव आराधना
शिव आराधना
Kumud Srivastava
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
Chaahat
कविता
कविता
Rambali Mishra
रात घिराकर तम घना, देती है आराम
रात घिराकर तम घना, देती है आराम
Dr Archana Gupta
मां स्कंदमाता
मां स्कंदमाता
Mukesh Kumar Sonkar
साकार आकार
साकार आकार
Dr. Rajeev Jain
भुला देना.....
भुला देना.....
A🇨🇭maanush
छल छल छलके आँख से,
छल छल छलके आँख से,
sushil sarna
मैने देखा है लोगों को खुद से दूर होते,
मैने देखा है लोगों को खुद से दूर होते,
पूर्वार्थ
वार्ता
वार्ता
Deepesh Dwivedi
बहराइच की घटना पर मिली प्रतिक्रियाओं से लग रहा है कि लोहिया
बहराइच की घटना पर मिली प्रतिक्रियाओं से लग रहा है कि लोहिया
गुमनाम 'बाबा'
हमने देखा है हिमालय को टूटते
हमने देखा है हिमालय को टूटते
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
सत्य का दीप सदा जलता है
सत्य का दीप सदा जलता है
पं अंजू पांडेय अश्रु
Loading...