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22 Feb 2024 · 1 min read

झुलसता जीवन

मई जून की तपती गर्मी, गरम-गरम लू चले बेशर्मी,
सूरज चढ़ा सातवें आकासा, जंगल,जीव,जंतु,जन प्यासा।

दिन रात झुलसते सब जग जीवन, दौड़ रहे हैं छाया ढूंढन।
पैदल दौड़े ले ले छाते, सफर तेज वाहन भी काटे।

दुर्घटना के बने शिकार, गर्मी की ऊपर से मार,
बिजली की इतनी है किल्लत, कूलर पंखे बंद अधिकतर।

सूखी नदियां,कूप,तालाब, गहरा जल स्तर दूषित आब,
क्या देहाती शहरी तरसे, बोतल पानी गर्जे बिकते।

मलिन बस्ती जन रहे पुकार, दूषित जल से बने बीमार,
महंगाई कमर तोड़ छाई है, झूंठे ढोल विकसित नाहीं है।

झुलस कराहती जनता जीती, कौन सुनाये किसको बीती ।।

Language: Hindi
84 Views
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