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19 Feb 2024 · 2 min read

*भव-पालक की प्यारी गैय्या कलियुग में लाचार*

माँ-सम सुत को पालती, कृषि-कृषक उद्धार|
गौ माता अन्नपूर्णा, जीवन का आधार ||

सूरज की है प्रतिनिधि, वसुओं को दे प्यार,
आदित्यों की बहना है, शिव भी नन्दी सवार,
मनवांछित फलदायिनी, धरा पे यह उपकार|
गौ माता अन्नपूर्णा………

भृगु ने द्विज को दान दिया, कामधेनु है नाम,
विष्णु किये गोपाला होकर गो-सेवा के काम,
गो-सेवा तन मन से हो, हो वैतरणी पार |
गौ माता अन्नपूर्णा………

मलशोधक, अणुरोधक गोबर, है कमला का वास,
गौमूत्र दे आरोग्य, धनवंतरी करें निवास,
ब्रह्मा विराजे कूबड़ में, गौ-स्पर्श है देव-द्वार|
गौ माता अन्नपूर्णा………

चन्द्रकिरण अवशोषित करती, स्वर्ण-तत्व दे रोग-निदान,
कर ग्रहण तारों की किरणें, ऊर्जित करती वर्तमान,
गौ-घृत से यदि हो हवन, हो प्राण-वायु संचार |
गौ माता अन्नपूर्णा………

घास-फूस खाकर भी माता, मधुमय दूध का देती दान,
कण-कण रक्त का पोषित कर हमको करती है बलवान,
शुचि-संवेदन, शील-स्रोत, दुग्ध ज्यों अमृत की धार|
गौ माता अन्नपूर्णा………

हरि अनंत, हरि-कथा अनंता, सो गौरस-व्याख्यान,
करते-करते न थकें फिर भी हम अपमान,
एक दृष्टि डालें अगर, मिल जाता है सार|
गौ माता अन्नपूर्णा………

वध निर्दयी कुछ करते जाते, कटती जाती गाय,
कामधेनु है कहलाती , फिर भी बच नहि पाय,
सूफ़ी-संत-सियाने भक्तों की सुनते नहीं गुहार|
गौ माता अन्नपूर्णा………

गौवंश अपना विशिष्ट, पश्चिम टिक नहिं पाय,
फिर काहे को गऊ अपनी, उपेक्षित-अनाथ रह जाय?
दुर्दिन कब तक झेलती, चहूँ ओर अँधियार?
गौ माता अन्नपूर्णा………

आर्तनाद न सुनता कोई, स्वार्थ सदा ललचाय,
ज़िंदा में ही फँसा के काँटा, खाल रहे नुचवाय|
वैदिक संस्कृति की प्रतीक, अब कहाँ गए संस्कार?
गौ माता अन्नपूर्णा………

भटके गली-गली ये मारी, घर-घर दुत्कारी जाय,
घुट-घुट जाएँ साँसें इसकी, पन्नी-प्लास्टिक खाय,
ऐंठन लगे उदर जब इसका, कहाँ मिले उपचार?
गौ माता अन्नपूर्णा………

टेम्पों में रेवड़-सी भरकर भेजी, छोड़ी जाए ,
साफ़-सफाई इन्हें है प्यारी गंद तनिक न सुहाय|
भव-पालक की प्यारी गैय्या कलियुग में लाचार!
गौ माता अन्नपूर्णा………

अंग्रेज़ों की नीति को अब तक समझ न पाय,
अर्थतंत्र की रीढ़ को, जाते क्यों चटकाय?
अब तो जागो भारतवासी, गैय्या रही पुकार!
गौ माता अन्नपूर्णा, जीवन का आधार

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