संवरना हमें भी आता है मगर,
खेल खेल में छूट न जाए जीवन की ये रेल।
सर्वप्रथम पिया से रंग
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
मारी थी कभी कुल्हाड़ी अपने ही पांव पर ,
हम अपने जन्मदिन ,सालगिरह और शुभ अवसर का प्रदर्शन कर देते हैं
Kharaila Vibhushan Pt. Tripurari Mishra is passes away in morning
ग़ज़ल को ‘तेवरी' क्यों कहना चाहते हैं ? डॉ . सुधेश
आवारग़ी भी ज़रूरी है ज़िंदगी बसर करने को,
डमरू की डम डम होगी, चारो ओर अग्नि प्रहार।
जब तक हमारे अंदर संदेह है तब तक हम विश्वास में नहीं उतर सकते
अमर काव्य
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
कभी-कभी कोई प्रेम बंधन ऐसा होता है जिससे व्यक्ति सामाजिक तौर
आँगन में दीवा मुरझाया
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
"आए हैं ऋतुराज"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD