प्रतिध्वनि ……

प्रतिध्वनि…
मैं पुकारता हूँ तुम्हें ,
पूरे अंतर्मन की शक्ति लगाकर ,
पर किसी कठोरता से टकराकर ,
लौट आती है ध्वनि मेरी ,
प्रतिध्वनि बनकर …….!
और बिखर जाती है ,
मेरे तन्हा शाम की
गमगीन आलम में ,
जहाँ ग़मों के सिवा
कुछ भी नहीं ……!
पर मैं तुम्हें ,
आज भी पुकारता हूँ ।
तुममें कोई शून्यता तो नहीं ……?
जहाँ से कोई ध्वनि ,
लौटती ही नहीं
प्रतिध्वनि बनकर ……!
चिन्ता नेताम “ मन “
राजीव नगर डोंगरगाँव
जिला-राजनांदगांव (छ.ग.)