Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Feb 2024 · 3 min read

ज्ञान सागर

गतांक से आगे
धर्मदास जी कहते हैं कि मुझे बताओ कि कैसे पुरूष वह लोक बनाया
साहेब कबीर वचन
सृष्टि के प्रारम्भ में पुरूष यानि परमात्मा अद्वेत अर्थात अकेले थे दूसरा कोई नहीं था जहां पांच तत्व और तीन गुण और न ही आकाश ही था । ज्योति निरंजन काल भी नहीं था न ही दश अवतार नहीं थे । ब्रह्मा, विष्णु ,महेश आदि भवानी गवरी गणेश नहीं थे । जीव और शिव का मूल नहीं था ना ही कामदेव था सहस्र अठासी ऋषि ना छः दर्शन और न ही सिद्ध चौरासी। सात वार पन्द्रह तिथि आदि अंत न ही काल का प्रभाव था। कूर्म,जल,पर्वत अग्नि, पृथ्वी शून्य विशुन्य नही जैसे पुष्प की सुरभि सब जगह विद्यमान थी ।
सोरठा:-प्रकट कहो जिमि रूप, देखो हृदय विचारिके।
आदि रूप स्वरूप, जिहिं ते सकल प्रकाश भयो ।।
स्वांसा सार से पुहुप प्रकाशा सोई पुहुप बिना नर नाला ज्योति अनेक होत झल हाला । पुहुप मनोहर सेतही भाऊ ।पुहुप द्वीप सब ही निर्माऊ । षोडश सुत तब ही निर्मावा कछु प्रकट कछु गुप्त प्रभावा ।।पुहुप द्वीप किमि करब बखाना। आदि ब्रह्म तहवाँ अस्थाना । सत्रह संख पंखुरी राजे। नौ सौ संख द्वीप तहां छाजे।।
तेरह संख सुरंग अपारा ।तिहि नहीं जान काल बरियारा ।।
साहेब कहते हैं
कमल असंख भेद कह जाना । तहँवा पुरुष रहे निर्वाना ।
मुझे सदगुरू ने बता दिया है वही भेद मैं तुमसे कहता हूँ ।
—————————————————————-****
**सप्त पंखुरी कमल निवासा। तहँवा कीन्ह आप रहि वासा ।**
–—————————––—————————————
सखी:- शीश दरस अति निर्मल,काया न दिसत कोश।
पदम् सम्पुट लग रहे, बानी विगसन होय ।।
एकही मूल सबै उपजाई । मिटे न अंड तेज अन्याई।।
धर्मराय है काल अंकुरा।उपजों तहां काल को मूला ।
तबहि पुरुष अस जुगत विचारा ।रहे धर्म द्वीप सो न्यारा।।
जोपे रहे सदा सिव काई ।तो एक द्वीप तुमहि निर्माई।।
पुरुष शब्द से सबै उपराजा । सेवा करें सुत अति अनुरागा ।।
जाने भेद न दूसर कोई ।उत्पति सबकी बाहिर होई ।।
अभ्यन्तर जो उत्पति होई । काया दरस पाय सब कोई।।
काया दरश सुरति इक पावे। संगहि द्वीप सबै निर्मावे ।।
धर्म धीर नहीं पावे द्वीपा। और सबै सुत द्वीपा समीपा ।।
साखी:-सेवा किन्ही धर्म बड़ ,दियो ठौर अब सोय ।
जाय रहो वही द्वीप मैं, सेवा निष्फ़ल ना होय ।।
पांचो तत्व तीन गुण सारा। यही धर्म सब कीन्ह पसारा।।
तब कियो नीर निरंजन राया। मीन रूप तबही उपजाया।।
साखी :- जाय कहो तुम पुरुष सों ,बहु सेवा हम कीन्ह।
सब सुत रहिहै लोकमहं, नव खण्ड हम कह दीन्ह ।।
********
मानसरोवर ताकर नाऊँ । सोऊ दियो धर्म कह ठाऊँ ।
अष्टांगी कन्या उत्पानी। जासों कहिये आदि भवानी ।।
रूप अनूप शोभा अधिकाई ।कन्या मान सरोवर आई।।
साखी:- चौरासी लक्ष जीव सब,मूल बीज के संग
ये सब मान सरोवरा, रच्यो धर्म बड़ रंग ।।

साखी:-देखि रूप कामिनी कौ, पल भर रह्यो न जाइ।
आगे पीछे ना सोचिया, ताको लीन्हेसि खाइ ।।
सहज दास ने कन्या को तुरंत छुड़ा लिया ऐसी करतूत जब पुरुष ने देखी तो धर्मराय को शाप दिया
सवा लक्ष जीव करौ अहारा। तऊ न ऊदर भरे तुम्हारा।
जोगजीत ने सतलोक से काल को निकाल दिया ।
***कह कामिनी सुन पुरुष पुराना।मैं अपना कछु मरम न जाना।।
कौन पुरुष मोहि उपजाई ।सो मोहि गम्य कहौ समुझाई।।
धर्मराय वचन
कन्या मैं उपजायो तोहि ।रहौ अलख नहिं भेंटहि मोही।
कन्या कह सुन पिता हमारा। खोजो वर होय ब्याह हमारा।।
वर खोजो जो दुतिया होई । कन्या मैं अब ब्याहौ तोही
पुत्री पिता न होवत ब्याहा ।पितहि पाय बहुते औगाहा।।
साखी:-धर्म कहै सुन कन्या, भरम भयो मति तोहि ।।
पाप पुण्य हमरे घरे, क्या डहकत तै मोहि ।।
भवानी कहती है
अस करहु कुलफ कपाट दे सब जीव जाहितै ना चले।।
दस चार सुत दीजे भयंकर जिहि तैं होय त्रास हो ।।
सोरठा:- चौदह वीर अपार, चित्रगुप्त दुर्गदानी सम।
आन देई अहार, सवा लक्ष जीव रात दिन ।।
क्रमशः

Language: Hindi
Tag: लेख
183 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from भूरचन्द जयपाल
View all

You may also like these posts

दर्द सीने में गर ठहर जाता,
दर्द सीने में गर ठहर जाता,
Dr fauzia Naseem shad
- दिल ये नादान है -
- दिल ये नादान है -
bharat gehlot
यदि कोई व्यक्ति कोयला के खदान में घुसे एवं बिना कुछ छुए वापस
यदि कोई व्यक्ति कोयला के खदान में घुसे एवं बिना कुछ छुए वापस
Dr.Deepak Kumar
अर्थार्जन का सुखद संयोग
अर्थार्जन का सुखद संयोग
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मधुमास में बृंदावन
मधुमास में बृंदावन
Anamika Tiwari 'annpurna '
यह जिंदगी मेरी है लेकिन..
यह जिंदगी मेरी है लेकिन..
Suryakant Dwivedi
लाज़िम है
लाज़िम है
Priya Maithil
"खुद में खुद को"
Dr. Kishan tandon kranti
जय माँ शारदे
जय माँ शारदे
Arvind trivedi
🙅अचरज काहे का...?
🙅अचरज काहे का...?
*प्रणय प्रभात*
Love is
Love is
Otteri Selvakumar
3518.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3518.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
****जिओंदा रहे गुरदीप साड़ा ताया *****
****जिओंदा रहे गुरदीप साड़ा ताया *****
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
दोस्ती एक पवित्र बंधन
दोस्ती एक पवित्र बंधन
AMRESH KUMAR VERMA
Gujarati Poetry | The best of Gujarati kavita & poet | RekhtaGujarati
Gujarati Poetry | The best of Gujarati kavita & poet | RekhtaGujarati
Gujarati literature
"आए हैं ऋतुराज"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
क़ैद-ए-जाँ से वो दिल अज़ीज़ इस क़दर निकला,
क़ैद-ए-जाँ से वो दिल अज़ीज़ इस क़दर निकला,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
दुनिया में लोग ज्यादा सम्पर्क (contact) बनाते हैं रिश्ते नही
दुनिया में लोग ज्यादा सम्पर्क (contact) बनाते हैं रिश्ते नही
Lokesh Sharma
प्यार या तकरार
प्यार या तकरार
ललकार भारद्वाज
छठ पूजन
छठ पूजन
surenderpal vaidya
सकारात्मक पुष्टि
सकारात्मक पुष्टि
पूर्वार्थ
रवींद्र नाथ टैगोर
रवींद्र नाथ टैगोर
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
10. Fatherly Throes
10. Fatherly Throes
Ahtesham Ahmad
"घड़ी"
राकेश चौरसिया
*नारी के सोलह श्रृंगार*
*नारी के सोलह श्रृंगार*
Dr. Vaishali Verma
अधरों के बैराग को,
अधरों के बैराग को,
sushil sarna
बचपन मेरा..!
बचपन मेरा..!
भवेश
हरियाली की तलाश
हरियाली की तलाश
Santosh kumar Miri
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी
सत्य कुमार प्रेमी
क्या सबकुछ मिल जाएगा जब खुश हो जाओगे क्या ?
क्या सबकुछ मिल जाएगा जब खुश हो जाओगे क्या ?
पूर्वार्थ देव
Loading...