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25 Jan 2024 · 1 min read

अनंत की ओर _ 1 of 25

अनंत की ओर

बहुत कुछ है जो ,बड़ा अजीब लगने लगा
दुनियाँ दारी ये मन , भीड से डरने लगा …

किनारों का मोह ना, सहारों की चाह रहीं
में तो बेफिक्र थी , समन्दर सिहरने लगा …

दौड़ रहीं है दुनियाँ, नम्बरों की होड़ में ,
मेरा प्यारा सा मन , शुन्य में ठहरने लगा …

ज़िन्दगी भर जिस , अंधेरे का ड़र था ,
साथ वो अंधेरा , परछाई सा चलने लगा …

उलझी रही ज़िन्दगी ,यूँ ही आस – पास ,
सोच का दायरा , अनंत को बढ़ने लगा ….

– क्षमा ऊर्मिला

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