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21 Jan 2024 · 1 min read

*आशाओं के दीप*

मां तेरी ममता से कैसे
कोई नफरत कर सकता है
कोई पत्थर दिल ही होगा
जो तेरी आंखों में
नीर देख सकता है।

इस मतलब की दुनिया में
अब तो बस आपाधापी
शीश नवाऊं तेरे चरणों में
तुझको कैसे कोई
कुमाता कह सकता है।

भाई बहन के रिश्ते में
स्नेह अपार होता था
इस झूठी शान शौकत में
कैसे कोई नफरत में बांट सकता है ।

खून के रिश्ते नातों में
जो अपनापन होता है
कुछ लोगों के कुछ कह देने से क्या?
इसमें नफरत का बीज उग सकता है।

हम इंसान हैं तो खुदा
सबके अलग-अलग है
तेरा मंदिर ,मेरा मस्जिद
कह देने से क्या कोई नफरत से
भगवानों को बांट सकता है।

कितना दुर्लभ होता जा रहा है
मात पिता को संग रखपाना
इस कुटिल हृदय की साजिश में
प्यार पर भारी नफरत हो जाती है।

आशाओं के दीप के जैसा
मात-पिता ने हमको पाला
चाहत के अरमानों को हमको दे डाला
कोई नफरत उनसे करें तो करें!
हमने तो उम्र भर का नाता
उनकी मुस्कानों को दे डाला।

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