हमने भी तुझे दिल से निकाल दिया
टूटकर बिखरना हमें नहीं आता,
फैला था कभी आँचल, दुआओं की आस में ,
गीत- तेरी मुस्क़ान मरहम से...
अब मत खोलना मेरी ज़िन्दगी
मानी बादल
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
आज कल इबादते इसी कर रहे है जिसमे सिर्फ जरूरतों का जिक्र है औ
ज़िन्दगी एक बार मिलती हैं, लिख दें अपने मन के अल्फाज़
ज़िन्दगी में पहाड़ जैसी समस्याएं होती है पर,
23/213. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
हमें स्वयं के प्रति संदेह करना होगा जीवन की गहराई में उतरना
इतिहास ख़ुद को बार बार दोहराता है