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9 Jul 2023 · 1 min read

प्रतिशोध

प्रतिशोध,

जल रही विरह की ज्वाला में,
पिया से लेना है प्रतिशोध मुझे।
प्रेमाग्नि मुझे झुलसाती है,
इसका होता अब बोध मुझे।

दीपक बाती का रिश्ता जो,
होता ये गहरा गहरा है ।
जलकर वियोग में प्रियतम के ,
काजल भी देता पहरा है ।
छा रही निराशा प्रतिपल है,
हो रहा अभी तक इंतजार।
आ रहे वेदना के स्वर अब,
हो रहा रुदन है बार-बार ।

पीकर वियोग की हाला को ,
अब कर लेना है शोध मुझे ।
जल रही विरह की ज्वाला में,
नियति से लेना है प्रतिशोध मुझे।

अब आया सावन मास पथिक,
है होता बारिश का प्रहार ।
मनभावन मौसम सावन का,
अब दर पर करता इंतजार ।
होती वियोग की सीमा तो,
इस मन को मैं समझा लेती।
मिलने की आशा में जोगी,
मैं अंतस को समझा लेती।
समझा होता जो मौसम को ,
तो क्यों होती इतनी पीड़ा।
अब भूले बाग बगीचे सब ,
हरियाली सावन क्रीडा।

भर रहा विषम का प्याला है ,
तजना सब अवरोध मुझे।
जल रही विरह की ज्वाला में,
नियति से लेना है प्रतिशोध मुझे।

डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम
7 जुलाई 2023

Language: Hindi
Tag: गीत
260 Views
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