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10 Jun 2023 · 1 min read

ग़ज़ल/नज़्म – हुस्न से तू तकरार ना कर

हुस्न से तू तकरार ना कर,
रुसवा सरे बाजार ना कर।

इश्क़ आग है ख़तरनाक बड़ी,
इसमें घी की बौछार ना कर।

कुछ कारण होगा बेवफ़ाई का,
अपनी वफ़ा का ख़ुमार ना कर।

कितना पाया कितना खोया,
खबरों में इसे शुमार ना कर।

प्यार झीने पर्दे में ही अच्छा,
दिखावा सरे संसार ना कर।

इश्क़ का ओर है ना छोर है,
इस पर कोई दीवार ना कर।

प्यार माँगने से मिला है कब,
इसकी तू दरकार ना कर।

किस्सों में आए नाम तेरा भी,
पहले से ही सरेबाज़ार ना कर।

दिल अहसासों का है मिलन,
दिमाग़ से तू इज़हार ना कर।

इश्क़ का मोल बड़ा है ‘अनिल’
इसको तू ख़ाकसार ना कर।

(खुमार = नशा, घमण्ड ।
(शुमार = हिसाब, लेखा, संख्या ।)
(दरकार = अपेक्षा, आवश्यकता)
(सरेबाज़ार = खुले आम, सबके सामने)
(इज़हार = जाहिर या प्रकट करना, निवेदन करना)
(ख़ाकसार = तुच्छ, दीन, नाचीज़)

©✍️स्वरचित
अनिल कुमार ‘अनिल’
9783597507
9950538424
anilk1604@gmail.com

1 Like · 435 Views
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