यादों को छांव
यादों के छांव में, पहुंच गए एक शाम ।
गलियां वही थी, बदल गया था नाम।
चल रही थी पुरवाई ले कर दूं मधुर मधुर।
झूम रहे थे तरु नसें में खनक रहे थे जैसे नुपुर
दादी मेरी कान खींच दे रही थी सख्त हिदायत
हम चढ़कर नहीं तोड़ेंगे ऊंचे दरख़्त का आम ।
बिठाकर कंधे पर पापा, करा रहे बागों का सैर ,
लोरियाँ सुना रही थी अम्मा फुर्सत में रही हो खैर।।
बच्ची भली मैं खा रही थी वो मेरी दूध कटोरी ,
मामा जी बोल रहे थे खाने में हूं मैं एक नम्बर चकोरी।
सुकून मिला जैसे पी ली हो यादों का जाम।
अचानक स्तब्ध हुई जैसे नींद से मैं जागी ,
पलकें भीगी आंखें नम थी मेरी यादों के छांव ,
चेतन मन खो गया, खो गई मेरी स्मृति नाव।