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7 Jun 2023 · 1 min read

इरफ़ान

इरफान तेरी जिक्र कौन करे?
तू सो गया कफ़न इन्सानी ओढ़ कर
वाकई ऊपरवाले का सगा निकला
जो माह ए रमज़ान में तेरी अकीदत रंग लाई
कुछ लोग सहरी इफ़्तार से जन्नत देख रहे हैं
अपनी जहालत पर जमहुरियत का लिहाफ़ लपेट कर।
मुल्क रोता है, आँखें सूज आई हैं कि एक तारा टूट कर उसके दामन में जा बैठा है,
पर कुछ पक्के हैं दीन के ठेकेदार होंठों पर जिनके रब है और दिलों में नफ़रतों की तेज तलवार।
सुपुर्दे ख़ाक भी ना हुआ था और नवाजने लगे तुझे अबु जहल बनाकर।
पैदा तू इंसान हुआ इंसान के लिए हुआ
इंसानियत ही तेरी कहानी थी इंसानियत पर ही ख़त्म हुआ।
ये जानकर वो भी खुश होगा, जो तू था तू वही रहा, नहीं लौटा झुठा पैगम्बर बनकर।
इरफ़ान तेरी ज़िक्र वो करे
जो राशिद हैं तुझे मुर्शिद मानकर
तू आँधी था आब था फ़नकार बेमिसाल था

Language: Hindi
411 Views
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